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पाठ ५ : जातक कथा

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गद्यांशों एवं श्लोकों का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद:

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य दोनों) से एक-एक गद्यांश व श्लोक दिए जाएँगे, जिनका सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद करना होगा, दोनों के लिए 5-5 अंक निर्धारित हैं।


उलूकजातकम्


अतीते प्रथमकल्पे जना: एकमभिरूपं सौभाग्यप्राप्त। सर्वाकारपरिपूर्ण पुरुष राजानमकुर्वन्। चतुष्पदा अपि सन्निपत्य एक सिंह राजानमकुर्वन्। ततः शकुनिगणा: हिमवत्-प्रदेशे एकस्मिन् पाषाणे सन्निपत्य ‘मनुष्येषु राजा प्रज्ञायते तथा चतुष्पदेषु च। अस्माकं पुनरन्तरे राजा नास्ति। अराजको वासो नाम न वर्तते। एको राजस्थाने स्थापयितव्यः’ इति उक्तवन्तः। अथ ते परस्परमवलोकयन्त: एकमुलूकं दृष्ट्वा ‘अयं नो रोचते’ इत्यवोचन्।

शब्दार्थ:जातक-जन्म: जातक कथा-भगवान बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाएँ बीते-बीते; प्रथा को -प्रथम कल्प में – मनुष्यों ने अभिल्य-विद्वान्; सौभाग्यशप्त-सौभाग्यशाली; चतपदा -चौपायों (जानवरों ने) ने गि-भी निगा – इकट्ठे होकर; शकुनिगणा:-पक्षीगण; हिमपत-प्रदेशे-हिमालय प्रदेश में पायाणे-चट्टान पर; मनष्य-मनुष्यों में प्रारक -जाना जाता है; तथा-उसी प्रकार; पूनः-फिर; अन्तरे-बीच में जराजको-बिना राजा के स्थापयिता-स्थापित करना चाहिए; एकमुलूक-एक उल्लू को: दृष्ट्वा-देखकरा

सन्दर्भ: प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘जातक-कथा’ पाठ के ‘उलूकजातकम्’ खण्ड से उद्धृत है।

अनुवाद: प्राचीनकाल में प्रथम युग के लोगों ने एक विद्वान सौभाग्यशाली एवं सर्वगुणसम्पन्न पुरुष को राजा बनाया। चौपायों (पशुओं) ने भी इकट्ठे होकर एक शेर को (जंगल का) राजा बनाया। उसके बाद हिमालय प्रदेश में एक चट्टान पर एकत्र होकर पक्षीगणों ने कहा, “मनुष्यों में राजा जाना जाता है और चौपायों में भी, किन्तु हमारे बीच कोई राजा नहीं है। बिना राजा के रहना उचित नहीं। (हमें भी) एक को राजा के पद पर बिठाना चाहिए।” तत्पश्चात् उन सबने एक-दूसरे पर दृष्टि डालते हुए एक उल्लू को देखकर कहा, “हमें यह पसन्द है।” ।


अथैक: शकुनिः सर्वेषां मध्यादाशयग्रहणार्थं त्रिकृत्व: अश्रावयत्। ततः एकः काकः उत्थाय ‘तिष्ठ तावत्’, अस्य एतस्मिन् राज्याभिषेककाले एवं रूपं मुखं, क्रुद्धस्य च कीदृशं भविष्यति। अनेन हि क्रुद्धेन अवलोकिता: वयं तप्तकटाहे प्रक्षिप्तास्तिला: इव तत्र तत्रैव धङक्ष्यामः। ईदृशो राजा मह्यं न रोचते इत्याह-
न मे रोचते भद्रं व: उलूकस्याभिषेचनम्।
अक्रुद्धस्य मुखं पश्य कथं क्रुद्धो, भविष्यति।।
स एवमुक्त्वा ‘मह्यं न रोचते’, ‘मह्यं न रोचते’ इति विरुवन् आकाशे उदपतत्। उलूकोऽपि उत्थाय एनमन्वधावत्। तत आरभ्य तौ अन्योन्यवैरिणौ जातौ। शकुनयः अपि सुवर्णहंसं राजानं कृत्वा अगमन्।

शब्दार्थ: अथ तत्पश्चात्, एक:-एक; शकनिः-पक्षी ने सर्वेषां सभी के मध्यात्-बीच से; आशय-मत; गहणार्थ-जानने के लिए; त्रिकृत्व-तीन बार; अश्रावयत-सुनाया (घोषणा की); काक:-कौए ने उत्थाय- उठकर तिष्ठ-ठहरो: तावत-जरा राज्याभिषेककाले राज्य अभिषेक के समय: तप्तः-गर्म: कटाहे- कढ़ाई में प्रक्षिप्तास्तिला-डाले गए तिल; तत्रैक-वही; धडक्ष्याम:-जल जाएँगे; ईदृशो-ऐसा; महां-मुझे न रोचते अच्छा नहीं लगता नहीं, मे मुझे रोचते-अच्छा लगता है; उलूकस्याभिषेचनम् उल्लू का राज्याभिषेक: अकुद्धस्य-क्रोधहीन का; पदेखो, क-कैसा; भविष्यति होगा; एवमुक्त्वा ऐसा कहकर; विरुवन-चिल्लाता हुआ; आकाशे-आकाश में उदपतन-उड़ गया; एनमन्वधावत्- उसका पीछा किया; तत-तब से; आरभ्य-लेकर; वैरिणौ जाती-शत्रु हो गए; शकुनयः-पक्षी; सुवर्णहंस-सुवर्ण हंस को; कृत्वा-बनाकर; अगमन-चले गए। ।

सन्दर्भ: पूर्ववत्।

अनुवाद: तत्पश्चात् सबका विचार जानने के लिए एक पक्षी ने तीन बार सुनाया (घोषणा की) तब एक कौआ उठकर बोला, “थोडा ठहर, (जब) राज्याभिषेक के समय इसका ऐसा मुख है तो क्रोधित होने पर भला कैसा होगा! इसके क्रोधित होकर देखने पर तो हम सब गर्म कड़ाही में डाले गए तिलों-सा जहाँ-के तहाँ जल जाएँगे। मुझे ऐसा राजा नहीं पसन्द।” इस प्रकार कहा-आप सभी के द्वारा इस उल्लू को राजा बनाना मुझे अच्छा नहीं लगता। इस समय इसका मुख क्रोधहीन है, तब ही यह इतना विकत दिखाई दे रहा है. तो क्रोध आने पर कैसा दिखाई देगा। ऐसा कहकर वह ‘मुझे नहीं पसन्द, मुझे नहीं पसन्द’, चिल्लाता हुआ आकाश में उड़ गया। उल्लू ने भी उसका पीछा किया। तभी से वे दोनों परस्पर शत्र बन गए। सुवर्ण हंस को राजा बनाकर पक्षीगण भी चल पड़े।


नृत्यजातकम्


अतीते प्रथमकल्पे चतुष्पदा: सिंह राजानमकुर्वन्। मत्स्या: आनन्दमत्स्यं, शकुनयः सुवर्णहंसम्। तस्य पुन: सुवर्णराजहंसस्य दुहिता हंसपोतिका अतीव रूपवती आसीत्। सः तस्यै वरमदात् यत् सा आत्मनश्चित्तरुचितं स्वामिनं वृणुयात् इति। हंसराज: तस्यै वरं दत्त्वा हिमवति शकुनिसङ्के । संन्यपतत्। नानाप्रकाराः हंसमयूरादयः शकुनिगणाः समागत्य एकस्मिन्महति पाषाणतले संन्यपतन्। हंसराज: आत्मनः चित्तरुचितं स्वामिकम् आगत्य वृणुयात् इति दुहितरमादिदेश। सा शकुनिसङ्के अवलोकयन्ति मणिवर्णग्रीवं चित्रप्रेक्षणं मयूरं दृष्ट्वा ‘अयं मे स्वामिको भवतु’ इत्यभाषत्। मयूर: ‘अद्यापि तावन्मे बलं न पश्यसि’ इति अतिगण लज्जाञ्च त्यक्त्वा तावन्महत: शकुनिसङ्घस्य मध्ये पक्षौ प्रसार्य नर्तितुमारब्धवान्। नृत्यन् चाप्रतिच्छन्नोऽभूत्। सुवर्णराजहंस: लज्जित:
‘अस्य नैव ह्रीः अस्ति न बर्हाणां समत्थाने लज्जा। नास्मै गतत्रपाय स्वदुहितरं दास्यामि’ इत्यकथयत्। हंसराजः तदैव परिषन्मध्ये आत्मनः भागिनेयाय हंसपोतकाय दुहितरमददात्। मयूरो हंसपोतिकामप्राप्य लज्जित: तस्मात् स्थानात् पलायितः। हंसराजोऽपि हृष्टमानस: स्वगृहम् अगच्छत्।

शब्दार्थ:चतुष्पदा:-चौपायों ने; मत्स्या:-मछलियों ने दहिता- पुत्री; अतीक्-अधिक, रूपवती-सुन्दर; तस्यै-उसे (उसके लिए); वरमदात्- वर दिया; आत्मनश्चित्तरुचितं-अपने मनपसन्द, वृणुयात्-वरण करे; दत्त्वा-देकर; हिमवति-हिमालय पर; शकुनिसड़धे-पक्षियों के समूह में संन्यपतत-उतरा, मणिवर्णग्रीवं-नीलमणि के रंग की गर्दन वाले चित्रप्रेक्षणं- रंग-बिरंगे पंखों वाले प्रतिच्छन्न-बिना ढका (नग्न): ही:-विनय: बर्हाणां-पंखों को; गतत्रपाय-लज्जाहीन को; परिषन्मध्ये-सभा के बीच में; भागिनेयाय- भांजे के लिए।

सन्दर्भ: प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘जातक-कथा पाठ के ‘नृत्यजातकम’ खण्ड से उदधत है।।

अनुवाद: प्राचीनकाल के प्रथम युग में पशुओं ने शेर को राजा बनाया। मछलियों ने आनन्द मछली को तथा पक्षियों ने सुवर्ण हंस को। इस सुवर्ण हंस की पुत्री हंसपोतिका अति रूपवती थी। उसने उसे वर (अर्थात् अधिकार) दिया कि वह अपने मन के अनुरूप पति का वरण करे। उसे वर देकर हंसराज पक्षियों के समूह में हिमालय पर उतरा। विविध प्रकार के हंस, मोर आदि पक्षी आकर एक विशाल चट्टान के तल पर एकत्र हो गए। हंसराज ने अपनी पुत्री को आदेश दिया कि वह आए और अपने मनपसन्द पति का वरण करे।
“यह मेरा स्वामी हो”-उसने (हंसपोतिका ने) पक्षी-समूह पर दृष्टि डालते हुए मणि के रंग-सदृश गर्दन तथा रंग-बिरंगे पंखों वाले मोर को देखकर कहा। “आज भी तुम मेरी शक्ति को नहीं देखती” (अर्थात् अब तक तुम्हें मेरे पराक्रम का आभास नहीं है), यह कहकर मोर ने अति गर्व-सहित लज्जा को त्यागकर पक्षियों के उस विशाल समूह के मध्य नृत्य करना प्रारम्भ किया और नृत्य करते-करते नग्न हो गया। (यह देख) सुवर्ण राजहंस ने लज्जित होकर कहा, “इसे न तो संकोच (विनय) है और न पंखों को ऊपर करने में लज्जा। इस निर्लज्ज को मैं अपनी बेटी नहीं दूंगा।” उसी सभा के मध्य हंसराज ने अपनी पुत्री अपने भांजे हंसपोत को दे दी। हंसपुत्री को न पाने पर मोर लज्जित होकर उस स्थान से भाग गया। हंसराज भी प्रसन्न मन से अपने घर चला गया।


प्रश्न/उत्तर:


प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।


प्रश्न: जना: एकं सुन्दरं सौभाग्यप्राप्तं कं राजानम् अकुर्वन्?
उत्तर: जनाः एकं सुन्दरं सौभाग्यप्राप्तं पुरुषं राजानम् अकुर्वन्।

प्रश्न: चतुष्पदाः कं राजानम् अकुर्वन?
उत्तर: चतुष्पदाः एकं सिंह राजानमकुर्वन्।

प्रश्न: शकुनिगणाः सन्निपत्य किम् व्यचारयन्?
उत्तर: शकुनिगणाः सन्निपत्य व्यचारयन्-‘मनुष्येषु राजा प्रज्ञायते तथा चतुष्पदेषु च। अस्माकं पुनरन्तरे राजा नास्ति। अराजको वासो नाम न वर्तते। एको राजस्थाने स्थापयितव्यः।’ ।

प्रश्न: के एकम् उलूकं राजानं कर्तं विचारम अकरोत?
उत्तर: शकुनिगणा: एकम् उलूकं राजानं कर्तुं विचारम् अकरोत्।

प्रश्न: काकस्योक्तिः किम् आसीत्?
उत्तर: काकस्य उक्तिः आसीत् यत-ईदृशो राजा मध्यं न रोचते।

प्रश्न: काकः कस्य विरोधम् अकुर्वन्?
उत्तर: काकः उलूकस्य विरोधम् अकुर्वन्।

प्रश्न: आकाशे कः उदपत?
उत्तर: आकाशे काकः उदपतत्।

प्रश्न: अतीते प्रथम कल्पे चतुष्पदाः कं राजानम् कुर्वन्?
उत्तर: अतीते प्रथम कल्पे चतुष्पदाः एकं सिंह, राजानम् कुर्वन्।

प्रश्न: काः आनन्दमत्स्यं राजानम् अकुर्वन्?
उत्तर: मत्स्याः आनन्दमत्स्यं राजानम् अकुर्वन्।

प्रश्न: हंसपोतिका कस्य दुहिता आसीत्?
उत्तर: हंसपोतिका सुवर्णराजहंसस्य दुहिता आसीत्।

प्रश्न: अन्ते शकुनिगणाः कं राजानम् अकुर्वन्?
उत्तर: अन्ते शकुनिगणाः सुवर्णहंसं राजानम् अकुर्वन्।

प्रश्न: हंसपोतिका कीदृशी आसीत्??
उत्तर: हंसपोतिका अतीव रूपवती आसीत् ?

प्रश्न: हंसराजः कस्यै वरम् अद्दात्?
उत्तर: हंसराजः स्वदुहितायै वरम् अददात्।

प्रश्न: का मयूरं पतिम् अचिनोत्?
उत्तर: हंसपोतिका मूयरं पतिम् अचिनोत्।

प्रश्न: कः शकुनिसधे नृत्यम् अकरोत्?
उत्तर: मयूरः शकुनिसचे नृत्यम् अकरोत्।

प्रश्न: कः पक्षौ प्रसार्य नर्तितुम् आरभत्?
उत्तर: मयूरः पक्षौ प्रसार्य नर्तितुम् आरभत्।

प्रश्न: हंसराज: कस्मै स्वदुहितरं न दास्यति।।
उत्तर: हंसराजः गतत्रपाय स्वदुहितरं न दास्यति।

प्रश्न: परिषन्मध्ये कस्मै दुहितरम् अद्दात्?
उत्तर: राजहंसः परिषन्मध्ये आत्मनः भागिनेयाय हंसपोतकाय दुहितरम् अददात्।

प्रश्न: परिषन्मध्ये कस्मै दुहितरम् अद्दात्?
उत्तर: राजहंसः परिषन्मध्ये आत्मनः भागिनेयाय हंसपोतकाय दुहितरम् अददात्

प्रश्न: राजहंसः कस्मै दुहितरम् अददात्?
उत्तर: राजहंसः हंसपोतकाय दुहितरम् अददात्।।

प्रश्न: हंसपोतकेन सह कस्याः विवाहः अभवत्?
उत्तर: हंसपोतकेन सह हंसपोतिकायाः विवाहः अभवत्।

प्रश्न: मयूरः हंसपोतिकाम् अप्राप्य कीदृशः अभवत्?
उत्तर: मयूरः हंसपोतिकाम् अप्राप्य लज्जितः अभवत्।

प्रश्न: परिषन्मध्यात् कः पलायित:?
उत्तर: परिषन्मध्यात् मयूर: पलायितः।

प्रश्न: हंसराजः हृष्टमानसः कुत्र अगच्छत्?
उत्तर: हंसराजः हृष्टमानस: स्वगृहम् अगच्छत्।















































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